#ClimateChange
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* जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं।
* विश्व ने दो-तिहाई तक अपना कार्बन स्पेस इस्तेमाल कर लिया है, 35 फीसदी जीवाश्म ईंधन के भंडार की खपत एवं और वैश्विक जंगलों का एक तिहाई हिस्सा काट दिया है।
* 'कीप द क्लाइमेट, चेंज द इकोनोमी' के अनुसार 18वीं सदी के मध्य से औद्योगिक क्रांति के शुरू होने के बाद से, पारंपरिक जीवाश्म ईंधन भंडार के 1,700 GtCO2e का 35 फीसदी उपयोग करते हुए एवं वैश्विक जंगलों के 60 मिलियन वर्ग किमी का एक-तिहाई काटते हुए विश्व पहले से ही वातावरण से 2,000 GtCO2e बाहर निकाल चुका है.
* वर्ष 1750 के बाद से विकसित देशों ने ऐतिहासिक उत्सर्जन का 65 फीसदी के आसपास उत्सर्जित किया है और उनकी ऐतिहासिक उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 1,200 टन है जोकि हरेक भारतीयों की तुलना में 40 गुना अधिक है।
* इसी का परिणाम है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से तापमान में 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जो पहले से ही असामान्य मौसम, विभिन्न प्रजातियों के प्रवास और विलुप्त होने, खाद्य और जल सुरक्षा और संघर्ष के संदर्भ में लोगों एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
* वहीं 19वीं सदी के आरंभ से अभी तक वैश्विक तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पहले ही हो चुकी है।
* इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का मानना है कि 2050 तक वैश्विक तापमान में 0.5 से 2.5 डिग्री सेल्सियस के बीच वृद्धि होगी, जबकि 2100 तक यह अनुमानित वृद्धि 1.4 से 5.8 डिग्री सेल्सियस के बीच हो जाएगी।
* अध्ययन बताते हैं कि हर साल लगभग 10 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन हमारे वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है।
* अनुमान है कि इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में लगभग 1.1 और 2.9 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ोत्तरी होगी।
चलो "खड़े हो जाओ, बोलो,और जलवायु परिवर्तन(Climate Change) को रोकने के लिए इसके खिलाफ सामूहिक रूप से निडर होकर आवाज उठाओ"
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